देहरादून: सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुतियों में अश्विनी द्वारा राग भूपाली में शास्त्रीय संगीत की शुरुआत प्रस्तिति हुई एवं उसके बोल रूपक ताल वबोस थे “अब मान ले…“ इसके बाद मध्य ले, “इतनु जोबन पर मान न करें“ उनकी अगली प्रस्तुति राग पराज में एक बंदिश थी, “पवन चलत अली की परकृ“ और तराना के साथ द्रुत तीन ताल में समापन हुआ। उनके साथ गायन पर रुतुजा लाड, तबला पर पं मिथिलेश झा और हारमोनियम पर परोमिता मुखर्जी थे। अश्विनी भिड़े मुंबई की एक हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत गायिका हैं। वह जयपुर-अतरौली घराने की परंपरा से ताल्लुक रखती हैं।
मजबूत संगीत परंपरा वाले परिवार में मुंबई में जन्मी, अश्विनी ने वॉयलिन वादक डीके दातार के बड़े भाई नारायणराव दातार के तहत शास्त्रीय प्रशिक्षण शुरू किया। फिर उन्होंने गंधर्व महाविद्यालय से अपना संगीत विशारद पूरा किया। तब से वह गायसरस्वती किशोरी अमोनकर की शिष्या मां माणिक भिड़े से जयपुर-अतरौली शैली में संगीत सीख रही हैं। उन्होंने माइक्रोबायोलॉजी में मास्टर डिग्री प्राप्त की है और भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, अखिल भारतीय गंधर्व महाविद्यालय मंडल, मुंबई से एक संगीत विशारद से जैव रसायन में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है। वह मानद डी.लिट की प्राप्तकर्ता भी रही हैं।
विरासत में बिभिन्न आर्ट वर्कशॉप का आयोजन, शाकिर खान के शास्त्रीय संगीत ने चढ़ाया रंग
09 अक्टूबर से 23 अक्टूबर 2022 तक चलने वाला यह फेस्टिवल Virasat Art and Heritage Festival लोगों के लिए एक ऐसा मंच है जहां वे शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य के जाने-माने उस्तादों द्वारा कला, संस्कृति और संगीत का बेहद करीब से अनुभव कर सकते हैं। इस फेस्टिवल में परफॉर्म करने के लिये नामचीन कलाकारों को आमंत्रित किया गया है। इस फेस्टिवल में एक क्राफ्ट्स विलेज, क्विज़ीन स्टॉल्स, एक आर्ट फेयर, फोक म्यूजिक, बॉलीवुड-स्टाइल परफॉर्मेंसेस, हेरिटेज वॉक्स, आदि होंगे। यह फेस्टिवल देश भर के लोगों को भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और उसके महत्व के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्राप्त करने का मौका देता है। फेस्टिवल का हर पहलू, जैसे कि आर्ट एक्जिबिशन, म्यूजिकल्स, फूड और हेरिटेज वॉक भारतीय धरोहर से जुड़े पारंपरिक मूल्यों को दर्शाता है।
रीच की स्थापना 1995 में देहरादून में हुई थी, तबसे रीच देहरादून में विरासत महोत्सव का आयोजन करते आ रहा है। उदेश बस यही है कि भारत की कला, संस्कृति और विरासत के मूल्यों को बचा के रखा जाए और इन सांस्कृतिक मूल्यों को जन-जन तक पहुंचाया जाए। विरासत महोत्सव कई ग्रामीण कलाओं को पुनर्जीवित करने में सहायक रहा है जो दर्शकों के कमी के कारण विलुप्त होने के कगार पर था। विरासत हमारे गांव की परंपरा, संगीत, नृत्य, शिल्प, पेंटिंग, मूर्तिकला, रंगमंच, कहानी सुनाना, पारंपरिक व्यंजन, आदि को सहेजने एवं आधुनिक जमाने के चलन में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और इन्हीं वजह से हमारी शास्त्रीय और समकालीन कलाओं को पुणः पहचाना जाने लगा है। विरासत 2022 आपको मंत्रमुग्ध करने और एक अविस्मरणीय संगीत और सांस्कृतिक यात्रा पर फिर से ले जाने का वादा करता है।